हम खामोश रहकर उनकी इंतजार मे हैं
और झगड के इन्कार कर के वो बेचैन जैसी
हात बढाकर पीछें खींचना फितरत उनकी
बाहें हमारी अब भी खुली हैं पहले जैसी
मेरी बातें तो सच थी दिन के धूप जैसी
और उनकी घबराहट न छूटी साये जैसी
पता नही क्या अंजाम है इस इंतजार का
धडकन तेज आज भी है पहले जैसी